इन बढते हुये कदमो को न रोकना कभी
मुश्किलो को देख कर हिम्मत न छोडना कभी
लोग कहेगे बहुत कुछ सून के न बहकना कभी
रास्ते कठीन हो फिर भी मन्जिल से पहले न रुकना कभी
कठीन कुछ भी नही है, कह के असम्भव पीछे न हटना कभी
आसान हो जायेगी मंजिल कदम पहला तो बढाना कभी
आसमाँ आ जायेगा हाथ मे जी से हाथ को ऊपर उठाना कभी
कारवाँ बन ही जायेगा कदम अपना आगे बढाना कभी
3 comments:
आपकी कविता इतनी अच्छी लगी कि अपने सजाल पर भी चिपका दी। आशा है आप बुरा नहीं मानेंगे।
Is kavita main to ekdum thakuron ka josh samaya hua hai. Sahi likhe rahe.
नही मिर्ची सेठ, मै बुरा नहीं मानूगा | ये तो मेरी खुशकिश्मती है कि अपने मेरी कविता को अपने सजाल पर चिपका दी है |
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